हैलो फ्रेंड्स, आज हम लेकर आए हैं फादर्स डे को लेकर "पिता" और "छत्रछाया" कविता, जिसको क्रमश: कुसुम अग्रवाल और रेनू ने लिखी है, और यह आपको काफी पसंद आएगी
पिता
कुसुम अग्रवाल
बच्चों की परवरिश में
सदा मां का नाम आया है।
पर वे बच्चे खुशनसीब हैं
जिन पर पिता का साया है।
मां की गोदी में अगर
चैन से सोया है वो।
तो पिता के कांधे पर
चढ़कर भी मुस्काया है।
बच्चों के उज्ज्वल
भविष्य के लिए
पिता ने एक-एक पैसा
बचाया है।
उनकी हर तमन्ना
पूरी करने खातिर
अपना खून पसीना
भी बहाया है।
जब-जब बच्चा
मां की याद में
रात को रोया है।
उसने ही बहला कर
सीने पर सुलाया है।
कठोर पुरुष हृदय
जो उसने पाया है।
वह बच्चों में
अनुशासन ही लाया है।
बुरे वक्त में अक्सर
वो ही उनके काम आया है।
बच्चों की जीवन बगिया में
वो ही बहार लाया है।
उसने ही मां के साथ
सुंदर संसार बसाया है।
छत्रछाया
रेनू 'शब्दमुखर'
असाधारण व्यक्तित्व पिता के
प्यार के आगे,उनके त्याग के आगे,
स्वतः ही मेरी आंखें नम हो जाती हैं
कभी-कभी नि:शब्द हो जाती हूं
आंखों से अश्रु धारा बह जाती है
खुद अभावों में रहकर,
हर दुख को सहकर,
खुशियां मेरी झोली में डाल,
मुझ को आनंदित देख,
आत्म संतुष्टि से तृप्त होता वो हृदय,
मैंने अपने पिता को ऊपर से
नारियल सा रूढ़,
कठोरता का आवरण ओढ़े हुए,
और अंदर शहद जैसी मिठास को
महसूस किया है,
हां, मेरे पिता को मैंने
अपने अंदर जड़ जमाए देखा है,
अपने संस्कारों में, विचारों में,
दृढ़ता में, स्वाभिमान में
सारे गुण उन्हीं के तो मुखरित हैं,
उड़ान हौसलों की
पिता दिया करते हैं
अपनी छत्रछाया में
सदा महफूज रखा करते हैं
यही दुआ है दिल की
यही तमन्ना है दिल की
अपनी छत्रछाया से
जीवन सदा समृद्ध करना,
परिस्थितियों के गर्म झंझावात से हमें
सदा यों ही बचाना,
बस यों ही अपना प्यार
सदा हम पर लूटाना,
अगले जन्म में भी मुझे
अपने कंधों पर खिलाना,
मुझे अपनी गोद में ही पनाह देना।
आपको हमारी यह पोस्ट कैसी लगी हमें कमेन्ट बॉक्स में जरूर बताएं, और अच्छी लगे तो अपने फ्रेंड्स के साथ शेयर भी करें। आप भी अपनी कोई रचना (कहानी, कविता) हमारी मेल आईडी hansijoke@gmail.com पर भेज सकते हैं जिसे आपके नाम के साथ पोस्ट किया जाएगा।
0 Comments
Thank you to visit our blog. But...
Please do not left any spam link in the comment box.