हैलो दोस्तों, आज हम आपके लिए लेकर आए हैं राजस्थान स्थापना दिवस स्पेशल, इस पोस्ट में आप पढ़ेंगे राजस्थानी कवि छीतर लाल सांखला (सी.एल. सांखला) रचित आपणो राजस्थान कविता, आपको काफी पसंद आएंगी। आप सभी को हमारी ओर से राजस्थान की स्थापना दिवस की बहुत बहुत शुभकामनाएं...
आपणो राजस्थान
(मौलिक अर अप्रकाशित रचना)
नेह प्रेम अर सदभावना सूं बाणियो आपणो राजस्थान
पन्ना-मीरा का भावां सूं भरियो आपणो राजस्थान
बन-बन घूम्यां राणा जी भी मान बचावण माटी रो
वीर वरां री ग़ाथावां सूं भरयो आपाणो राजस्थान
टकरा जावै जे दल्ली सूं दुरगादास अठै छै
धन सारो जे अरपण कर दै, भामाशाह अठे छै
छै रुपवती पदमण राणी जे कूदै झग्गाती ला में
छै हाडी राणी लै खंजर जे शीश उतारै महलां में
बह रह्यो रगत हळदी घाटी थां घूम घूम क देखो तो
ओ वीर प्रतापी तलवारां सूं लडयो आपणो राजस्थान
संकराती सूरज की लाली सुपना नुवा जगा जावै
घर घर होळी ओर दिवाळी दिवला णूया जळा जावै
कलक्यां आसमान मं उडती ढ़ोल मजीरा गळी गळी
खेता की जब फसला मुळकी खिल जावै छै कळी कळी
उडै अबीरा ओर गुलालां रात्युं चालै फूलझडयां
रंग रंगीला चतरामां सूं सज्यो आपणो राजस्थान
प्रेम प्यार छै अठी अनूठो ढ़ोला मरवण की गाथां मं
झरै ओस का मोती जाणै गोरी गजवण की बातां मं
झीणा सां घूंघट मं मुळके, कामण ग्यारी नार रूपाळी
ज्यारं बाजरी खेतां ऊभी करता रीज्यो राम रूखाळी
रुँख पखेरु घणा चहकता, चकवी-मोर-पपीया-कोयल
प्रीत गुटर गूं का भावां सूं भरयो आपणो राजस्थान
प्रेम भगति की राह बतावै मीरां अर रैदास अठै छै
बिस नै जे अमरित कर देवै, ऊ साचो बिसवास अठै छै
कारज सारै गजानंद जी, बीजासण अर चौथ भवानी
राम रूणीचा का बाबा नै ध्यावै छै सब ग्यानी ध्यानी
परदेशां सूं घणा जातरी आवै पुष्कर का मेळा मं
मन की सांची मनवारां सूं भरयो आपणो राजस्थान
ऊंट रूपाळा जैसलमेरी, जैपर लागै ज्यूं लाडी सा
जोधाणा की मैहल मेडिया, बीकानेर लागै दादी सा
बाढ़मेर की घणी बढ़ैआ कोटा बूंदी चामल सूं तर
उभो गढ़ चित्तौड स्यान सूं झालो-बारां बीं अपणो घर
झीला की नगरी उदियापुर अरावली की शोभा न्यारी
लाख ढ़ाणियां अर गांवा सूं बण्यो आपणो राजस्थान
(मौलिक अर अप्रकाशित रचना)
नेह प्रेम अर सदभावना सूं बाणियो आपणो राजस्थान
पन्ना-मीरा का भावां सूं भरियो आपणो राजस्थान
बन-बन घूम्यां राणा जी भी मान बचावण माटी रो
वीर वरां री ग़ाथावां सूं भरयो आपाणो राजस्थान
टकरा जावै जे दल्ली सूं दुरगादास अठै छै
धन सारो जे अरपण कर दै, भामाशाह अठे छै
छै रुपवती पदमण राणी जे कूदै झग्गाती ला में
छै हाडी राणी लै खंजर जे शीश उतारै महलां में
बह रह्यो रगत हळदी घाटी थां घूम घूम क देखो तो
ओ वीर प्रतापी तलवारां सूं लडयो आपणो राजस्थान
संकराती सूरज की लाली सुपना नुवा जगा जावै
घर घर होळी ओर दिवाळी दिवला णूया जळा जावै
कलक्यां आसमान मं उडती ढ़ोल मजीरा गळी गळी
खेता की जब फसला मुळकी खिल जावै छै कळी कळी
उडै अबीरा ओर गुलालां रात्युं चालै फूलझडयां
रंग रंगीला चतरामां सूं सज्यो आपणो राजस्थान
प्रेम प्यार छै अठी अनूठो ढ़ोला मरवण की गाथां मं
झरै ओस का मोती जाणै गोरी गजवण की बातां मं
झीणा सां घूंघट मं मुळके, कामण ग्यारी नार रूपाळी
ज्यारं बाजरी खेतां ऊभी करता रीज्यो राम रूखाळी
रुँख पखेरु घणा चहकता, चकवी-मोर-पपीया-कोयल
प्रीत गुटर गूं का भावां सूं भरयो आपणो राजस्थान
प्रेम भगति की राह बतावै मीरां अर रैदास अठै छै
बिस नै जे अमरित कर देवै, ऊ साचो बिसवास अठै छै
कारज सारै गजानंद जी, बीजासण अर चौथ भवानी
राम रूणीचा का बाबा नै ध्यावै छै सब ग्यानी ध्यानी
परदेशां सूं घणा जातरी आवै पुष्कर का मेळा मं
मन की सांची मनवारां सूं भरयो आपणो राजस्थान
ऊंट रूपाळा जैसलमेरी, जैपर लागै ज्यूं लाडी सा
जोधाणा की मैहल मेडिया, बीकानेर लागै दादी सा
बाढ़मेर की घणी बढ़ैआ कोटा बूंदी चामल सूं तर
उभो गढ़ चित्तौड स्यान सूं झालो-बारां बीं अपणो घर
झीला की नगरी उदियापुर अरावली की शोभा न्यारी
लाख ढ़ाणियां अर गांवा सूं बण्यो आपणो राजस्थान
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