निराला राजस्थान

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निराला राजस्थान

हैलो दोस्तों, आज हम आपके लिए लेकर आए हैं राजस्थान स्थापना दिवस स्पेशल, इस पोस्ट में आप पढ़ेंगे राजस्थान की व्याख्या करती कविता निराला राजस्थान, जो आपको काफी पसंद आएंगी। आप सभी को हमारी ओर से राजस्थान की स्थापना दिवस की ढेर सारी शुभकामनाएं...
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निराला राजस्थान (राजस्थानी कविता)
त्याग, प्रेम, सौन्दर्य, शौर्य की,
जिसका कण-कण एक कहानी।
आओ पूजे शीश झुकाएं,
मिल हम, माटी राजस्थानी॥
सुबह सूर्य सिंदूर लुटाए,
संध्या का भी रूप संवारे।
इस धरती पर हम जन्मे हैं,
पूर्व जन्म के पुण्य हमारे॥
सघन वनों की धरा पूर्व की,
झरे कही झरनों से पानी।
बोले मोर पपैया कोयल,
खड़ी खेत में फसले धानी॥
गोडावण के जोड़ों के घर,
पश्चिम के रेतीले टीले।
ऊंट, भेड़, बकरी मस्ती से,
जहां पालते लोग छबीले॥
बंशी एकतारे, अलगोजे,
कोई ढोलक-चंग बजाए।
कही तीज, गणगौर, रंगीली,
गोरी फाग बधावे गाए॥

कहीं गूंजे भजन मीरा के
और कहीं, अजमल अवतारी।
दादू और रैदास सरीखे,
यह धरती ही तो महतारी॥
स्वामी भक्त हुए इसमे ही,
पीथल, भामाशाह, पन्ना से॥
दुर्ग-दुर्ग में शिल्प सलोना ,
दुर्गा जैसी हैं, हर नारी।
हैं हर पुरुष प्रताप यहां का,
आजादी का परम पुजारी॥
यहां भाखड़ा-चम्बल बांटे ,
खुशहाली का नया उजाला।
भारत की पावन धरती पर,
अपना राजस्थान निराला॥


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