श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर कविता
रात अंधियारी कारी, जन्मे जब कृष्ण मुरारी,
खुली गईं तब बेड़ियां सारी, जब जन्म लिए बनवारी।
धन्य हुए वासुदेव देवकी, खुशियां जीवन में पधारी,
कंस के अन्त की तब तो, हो गई पूरी तैयारी।
खुल गए सब ताले झट से, सो गए दरबान भी सारे,
कान्हा को लेकर फिर, वासुदेव गोकुल को पधारे।
छायी घन घोर घटाएं, आफत-सी बरसती जायें,
यमुना का जल भी देखो, हर पल बढ़ता ही जायें।
वासुदेव सब देख रहे थे, फिर भी ना हिम्मत हारे,
कृष्णा को लेकर वो फिर, झट से बढ़ गए थे आगे।
आगे वासुदेव जी चलते, कान्हा को सिर पर थामे,
पीछे थे शेषनाग जी, वो भी कान्हा को ढांके।
गोकुल में जब वो आये, सबको सोते हुए पाये,
यशोदा की उठा के बेटी, कृष्णा को वहां लिटाये।
वापस आ गए फिर मथुरा, हाथों में बेड़ियां आईं,
दरबान जागे फिर सारे, सूचना कंस को पहुंचाई।
जैसे वो मारने आया, देवी ने रच दी माया,
गोकुल वो पहुंच चुका है, तुझको जो मारने आया।
गोकुल में फैली खुशियां, सब ने फिर जश्न मनाया,
जग का उद्धार करने, कृष्णा इस जग में आया।
प्रभु के दर्शन करने को, आये फिर नर और नारी,
सबका है अन्त अब आया, जितने हैं अत्याचारी।
रात अंधियारी कारी, जन्मे जब कृष्ण मुरारी,
खुल गईं तब बेड़ियां सारी, जब जन्म लिए बनवारी।
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1 Comments
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