एक गावं के बाहर बने
शिवमंदिर मे चार-पांच गंजेडी रोज गांजा पीते थे,
पिछले कई साल से जब भी वो गांजा पीते थे तब "बम भोले" का
जयकारा करते थे
चिल्लम की हर फूंक के साथ,
एक दिन खुद शिव जी उनके इस भक्ति माध्यम से प्रसन्न हो गए,
वो एक साधारण मनुष्य के रूप मे उन गंजेड़ियों के पास आ कर बैठ गए,
गंजेड़ियों ने चिल्लम बनाना शुरू किया, तो एक गंजेडी ने शिव जी को गांजा ऑफर किया,
प्रायः गंजेड़ियों में मेहमानवाजी बडे उच्च स्तर की होती है,
इसलिए गंजेडीयों ने पहला चिल्लम भोलेनाथ को ही दिया,
एक फूंक मे ही शिवजी ने पूरा चिल्लम खाली कर दिया,
गंजेड़ियों को लग गया कि ये कोई उच्च कोटी का पीने वाला है,
फिर उन्होने दूसरा चिल्लम बनाया
और फिर पहला मौका भोलेनाथ को दिया
शिवजी ने फिर एक फूंक मे ही पूरा चिल्लम खाली कर दिया,
हर फूंक के बाद एक गंजेडी, भोलेनाथ से पूछता रहा : "नशा आया"?
जवाब मे शिव जी केवल मुस्कुरा के 'ना' मे सर हिला देते,
ऐसे कर के जब पांच चिल्लम खाली हो गए तो...
गंजेडी आखिरी चिल्लम भरने लगे तभी उनमे से एक
गंजेडी ने पूछा : " क्यों अभी भी नशा नहीं हुआ ? "
तब शिव जी ने कहा : "जानते हो मैं कौन हूं?"
गंजेडी : "कौन हो भाऊ ? "
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शिवजी : " मै इस ससांर का संहारक, सभी भूत, प्रेत, यक्ष, असुर, गंधर्व का स्वामी, ब्रह्माण्ड का आदिवासी, हिमालय का निवासी हूं,
आदि अंत - प्रारंभ, नाश और नशा सब की सीमा मुझसे प्रारंभ होती है और मुझ पर ही खत्म, शकंर नाम है मेरा, जिसको तुम लोग रोज याद करते हो "
गंजेडी जोर से चिल्लाया : " अब इसको और चिल्लम मत देना बे, गांजा चढ़ गया इसको
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Happy sawan......
Bol Bom...
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