प्रेम-रंग से रंग दो
अशोक आनन
वसन मन के कोरे हैं -
प्रेम-रंग से रंग दो।
कोरी रंग से रहे न-
रंग जाए मन-फरिया।
रंग घुल -घुल बहने लगे -
मन में सतरंगी दरिया।
प्रेम-गुलाल को मलकर
मन-बयार तुम रंग दो।
हुरियारे-से रंगकर-
फूल भी हुड़दंग करें।
नाच हवा के साथ वे -
धरती पर पांव न धरे।
इन्द्रधनुषी मेघों से-
आस्मां सारा रंग दो।
सृष्टि की हर रचना -
अब रंगों से रंगी दिखे।
रंग, रंग के पृष्ठ पर -
प्यार के नव छंद लिखें।
गीतों का यह संसार-
भाव-शिल्प से रंग दो।
मन के उजड़े बाग में-
कलियां प्यार की चटकें।
जिनके ऊपर मंडराकर-
मन भौंरों का भटके।
तितलियों के पंखों-सी -
देह रंगीन रंग दो।
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