हैलो फ्रेंड्स, आपका एक बार फिर से हमारे ब्लॉग में स्वागत है। हम फिर से हाजिर है पर्यावरण को लेकर जागरूक करती एक नई पोस्ट लेकर, जिसको लिखा है भरत शर्मा "भारत" ने।
कहते मुझे पर्यावरण
भरत शर्मा "भारत"
मैं पेड़ हूं, मैं हूं हवा,
मैं सृष्टि का उपहार हूं।
मैं स्वच्छ निर्मल नीर हूं,
मैं ही जगत आधार हूं।
शुचिता सहित वरदान मैं,
दूषित किया अभिशाप हूं।
शिक्षित अशिक्षित सब करें,
मैं स्वच्छता का जाप हूं।
मुझमें बसा हर नाद है,
मैं सृजन हूं, संगीत हूं।
मैं हूं अचेतन चेतना,
मैं ही धारा का मीत हूं।
सुन ले समझ ले तू मनुज,
मेरा परम है आवरण।
मैं हूं प्रबल निरपेक्षता,
कहते मुझे पर्यावरण।
मैं हूं प्रबल।
श्रृंगार भूधर वन सघन,
सरिता सलिल रस आचमन।
मकरंद गंध सुहावनी,
डोली उठा झूमें पवन।
है स्वर्ग से सुन्दर धरा,
अन्तर्निहित अनुपात में।
रखना जरूरी संतुलन,
बस ध्यान रख इस बात में।
वसुधैव सारा तंत्र है,
कल्याण मेरा मंत्र है।
लौकिक चराचर युक्ति है,
अद्भुत अलौकिक यंत्र है।
संयम सहित उपयोग का,
जब तक करोगे आचरण।
होता रहेगा तब तलक,
हर आपदा का परिहरण।
मैं हूं प्रबल।
जल स्वच्छ हो पावन पवन,
हो शस्य श्यामल यह धरा।
सबकी अलग उपयोगिता,
गिरि वृक्ष घाटी कन्दरा।
सागर विषैला कब रहा,
तुमने जहर से भर दिया।
मतिअंधता की होड़ ने,
हर काम उल्टा कर दिया।
संकट खड़ा अस्तित्व पर,
दूषित हुई हर चीज है।
दूषित कलेवर में छिपा,
तय आपदा का बीज है।
अब भी समय जो शेष है,
कर सोच का कायांतरण।
पुरुषार्थ ही प्रारब्ध है,
करना है केवल जागरण।
मैं हूं प्रबल निरपेक्षता,
कहते मुझे पर्यावरण।
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