कृपा करो कृपानिधान

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कृपा करो कृपानिधान

हैलो फ्रेंड्स, आपका हमारे ब्लॉक में स्वागत है, आज आपके लिए हम लेकर आए है आज इस पोस्ट में कोरोना महामारी के दौर में जो हमारे द्वारा एक दूसरे को सहयोग करने की बजाय की जा रही नियमों की अवहेलना, मनमानी कीमतों पर सामान को बेचना जैसी कई घटनों का विवरण  किया गया है।

 

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सबक
डॉ. संजय गौड़


एक बरस बीत चला,
हम वहीं के वहीं रहे,
सबक नहीं हमने सीखा,
जख्म अब नासूर हुए।
वायरस गहरी चाल चल गया,
हम अनुशासन हीन रहे,
जिम्मेदारी का भान नहीं,
हम लातों के भूत हुए।
फटी जींस शान से पहनी,
मास्क से हम दूर रहे,
सामाजिक दूरी नहीं निभाई,
स्वयं काल के ग्रास हुए।
पानी तो बिकता ही था,
हवा भी अब बेच रहे,
भरता नहीं पेट हमारा,
हम वहशी शैतान हुए।
पढ़ी पढ़ाई कैसी हमने,
अपना ही जग उजाड़ रहे,
मंगल तक थी उड़ान हमारी,
अब पिंजरे में कैद हुए।
पाने को सारा भू-नभ,
जीवाणु भयंकर बना रहे,
मानवता ही खतरे में पड़ी,
अब अस्त्र-शस्त्र बेकाबू हुए।
चहुं ओर बर्बादी के मंजर,
सबक नहीं हम ले रहे,
अभी समय है संभल जाएं,
सीख लें उनसे जो यमलोक हुए।

कृपा करो 'कृपानिधान'
विकास चतुर्वेदी 'अरमान'


इंसानी गिद्ध, दिख रहे आपदा में
प्राणवायु पर दिख रहा घमासान।
कैसे-कैसे मंजर दिखा रहा
मेरा भारत देश महान।
रोज टूटती सांसें देखी
रोज टूटती आसें देखी।
अस्पतालों में शोरगुल तो
सड़कें मरघट-सी वीरान।
शहर मकानों में बंद हो गए
जानवर सड़कों पर स्वछंद हो गए
मरने पर न मिली लकड़ी
न जाने कौन कब तक मेहमान।
सरकारें सारी पस्त हो गई
जनता सारी त्रस्त हो गई
अब तो लीला बंद करो और
जगत कल्याण करो भगवान।
तुम्हारी सृष्टि ध्वस्त हो रही
तुम्हारी रचना अस्त हो रही
दिख रहा हर तरफ महाप्रयाण
कृपा करो अब कृपा निधान।

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