पर्यावरण सुधारें

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पर्यावरण सुधारें




काव्यांजलि....
पर्यावरण सुधारें
विश्वम्भर मोदी पंचतत्त्व से बना हुआ है
सबका यह जीवन
पानी, पावक, संग समीर के 
धरती और गगन मानव, पशु पक्षी, तरु,
झाड़ी लता कीट पतंग अन्योन्याश्रित किए प्रकृति ने 
इनके सभी प्रसंग
प्रमुख पांच तत्वों में प्रिय है
अपनी माता धरती
अन्न, फूल, फल उगा हमारा
पालन पोषण करती
अपने उर में रखती ज्वाला,
जल, रत्न, खनिज भंडारण
मानव दोहन करता है,
अपनी लिप्सा के कारण 
यह वसुधा, नग धृता रसा 
यह अचला विश्वम्भरा हैं 
आज ध्वंस उन्मुखी बन रही 
अपनी मातृ परा है
मनहर रूप ना बिगड़े,
मिलकर सुंदर छवि निखारें 
होने ना दें तनिक प्रदूषण,
पर्यावरण सुधारें 

सहेजें कतरा कतरा 
श्वेता शर्मा
जो मनुज होने का मान तुम्हें 
थोड़ी मानवता दिखलाओ। 
बुद्धि बल बस बहुत हुआ 
सौंदर्य हृदय का बिखराओ।।
खोकर जीवन संतुलन 
वसुधा विचलित ना हो जाए,
सही समय है स्वार्थ स्वप्न से
अब तो बाहर आ जाओ।।
दूषित धरित्री का हर कोना,
प्राण वायु भी है दूषित!
लोभ अग्नि जितनी प्रचंड
अच्छाई उतनी ही संकुचित।। 
प्रगति की अंधी दौड़ में कूदे,
भूल गए तुम क्यूं यह बात,
परिणाम अशुभ ही होंगे गर
कार्य करोगे सब अनुचित।। 
छिन्न किया उर्वी का आंचल
उससे भी मन नहीं भरा।
जलधि के जीवों पर भी
ला किया खड़ा तुमने खतरा।।
चेत जाओ जो देर हुई तो
फिर पीछे पछताओगे
जीव मात्र है निधि अमूल्य!
आओ सहेजें कतरा कतरा॥

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