सर्द हवा
मौसम की पहली लहर,
और वो पहला अलाव,
कुछ याद कर,
ठिठक कर देखता हूं...
कहां ले चला,
मकसदों का ये बहाव,
वक्त की बंदिशों पर,
रोज घुटने टेकता हूं...
ये सांझे की आग,
और बेगानों से जुड़ाव,
दो टुकड़े लकड़ी के,
ढूंढ कर फेंकता हूं...
मजबूरी और मुस्कान में,
एक का चुनाव,
कुछ पल ही सही, आज फिर...
थम कर जरा हाथ सेकता हूं...
अलाव
केदार शर्मा 'निरीह'
रात का घना अंधकार,
घनी ठंड, घना कोहरा,
अलाव के कवच में,
सिमटी है अनेक सांसे।
धीरे-धीरे जमी हुई
चर्चाएं पिघलती हैं,
कभी उबलती हैं,
और विलीन हो जाती हैं
भाप बनकर।
अफसाने सुलगने लगते हैं,
कभी धुआं उठता है,
और नम हो जाती हैं आंखें।
यादों की चिंगारियां,
उड़ने लगती हैं।
तापना तो एक बहाना है,
सच में तो
भीतर का ताप मिटाना है।
समय के साथ,
ठंडे होने लगे हैं अलाव,
राख बुझी-बुझी सी है,
जाने क्यों अलाव
उदास-उदास सा है।
बाजी
रामगोपाल आचार्य
सभी को आंख का
तारा न कर,
बिना परखे ही डोरे
डारा न कर।
मिल बांट कर खाना
सीख लेना,
माल कब्जे में अपने
सारा न कर।
कहते जिंदगी भी तो
एक जंग है,
हर जगह पर बाजी
हारा न कर।
प्रत्येक समस्या का
समाधान है,
दिमाग ठंडा रख,
गर्म पारा न कर।
हर किसी को
बराबर समझना,
किसी कमजोर को
मारा न कर।
सच को सच
झूठ को झूठ कह दे,
तू उनकी आरती
उतारा न कर।
'रामजी' जीत सत्य की होती है
बस रख भरोसा,
मन खारा न कर।
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