हैलो फ्रेंड्स, आज हम लेकर आए हैं फादर्स डे को लेकर कविता, जिसको पूजल विजयवर्गीय ने लिखा है, और यह आपको काफी पसंद आएगी
मेरा गर्व, मेरा स्वाभिमान हो तुम
पूजल विजयवर्गीय
मेरा रूदन,
घर में उद्घोष था,
तुम्हारे पितृत्व को जगाने का,
मेरे स्पर्श से,
तुम्हें कोमल हृदय बनाने का,
मेरी मुस्कान से,
तुम्हारे चेहरे पर खिलखिलाहट लाने का,
मेरे कदमों से,
एक नए रास्ते को बनाने का,
मेरे अस्तित्व की पहचान हो तुम,
मेरा गर्व, मेरा स्वाभिमान हो तुम।
कंधों पर बैठाकर तुमने,
मुझको दर्शन करवाया,
कभी बंदर, कभी घोड़ा बनकर,
मुझे झूला झुलाया,
खुद घुटनों पर बैठकर,
मुझे अपने पैरों पर चलना सिखाया,
पीछे दौड़-दौड़कर,
मुझे साइकिल चलाना सिखाया,
मेरे लिए हर किरदार में फिट हुए तुम,
मेरा गर्व, मेरा स्वाभिमान हो तुम।
करूं नहीं किसी के भी साथ गलत,
संग में ईमानदारी का पाठ भी पढ़ाया था,
अपने हक के लिए आवाज उठाना
तुमने ही सिखाया था,
संग में रहोगे हमेशा खड़े मुझे
यह भरोसा दिलाया था,
हर खेल में भाग लेना तुमने ही
मुझे सिखाया था,
हार में हौसला और जीत में जश्न
मनाना भी तुमने बताया था,
मेरी कृति के रचनाकार हो तुम,
मेरा गर्व, मेरा स्वाभिमान हो तुम।
जज्बात के तूफान समेट कर तुमने,
मुझको मजबूत बनाया है,
रिश्तों में झुककर तुमने,
परिवार को एकजुट बनाया है,
घर की सभी जिम्मेदारी उठाकर तुमने,
मेरा बोझ उतराया है,
मायूसी न हो मेरे चेहरे पर,
यह उत्तरदायित्व तुमने अपने कंधों
पर उठाया है,
मेरे घर की नींव हो तुम,
मेरा गर्व, मेरा स्वाभिमान हो तुम।
सारी तकलीफें झेलकर तुमने,
सबको महफूज किया,
रह न जाए कोई भी ख्वाहिश अधूरी,
मेरे मन की हर बात को महसूस किया,
खुद फटी कमीज पहनकर,
मुझे नए कपड़े दिलवाए हैं,
खेलें जितने भी खेल तुम्हारे साथ,
तुमने सभी मुझे जितवाए हैं,
तुम्हारे आगे सब जन्नत भी अधूरी है,
सच है, पिता है तो सारी ख्वाहिशें पूरी हैं,
मेरे पूरे हुए अरमानों का नाम हो तुम,
मेरा गर्व, मेरा स्वाभिमान हो तुम।
मेरी मांग को जिद, हक और इच्छा माना,
पूरा करना अपना दायित्व माना,
है नहीं कोई भी भेदभाव बेटे-बेटी में,
तुमने बस इसी नियम को माना,
बतलाया नहीं, जताया नहीं,
पर फिक्र सबसे ज्यादा करते हो,
पूछा जब भी मैंने,
कि कितना प्यार करते हो,
इधर-उधर देखकर बस बात
काट दिया करते हो,
मेरी सादगी का परिचय हो तुम,
मेरा गर्व, मेरा स्वाभिमान हो तुम।
समाज के नियम को तुम भी निभाते आए,
चेहरे पर हमेशा संग अपने एक गंभीरी लाए,
मन में भाव छुपे थे लाखों,
पर आंखों से न दिखलाए,
इतने कठोर थे नियम इनके,
कि रोती आंखों को भी तुम पोंछ न पाए,
विदाई के समय सब थे वहीं,
पर आकर गले से तुम मुझे लगा तक न पाए,
मेरे आदर्शों की परिभाषा हो तुम,
मेरा गर्व, मेरा स्वाभिमान हो तुम।
आपको हमारी यह पोस्ट कैसी लगी हमें कमेन्ट बॉक्स में जरूर बताएं, और अच्छी लगे तो अपने फ्रेंड्स के साथ शेयर भी करें। आप भी अपनी कोई रचना (कहानी, कविता) हमारी मेल आईडी hansijoke@gmail.com पर भेज सकते हैं जिसे आपके नाम के साथ पोस्ट किया जाएगा।
0 Comments
Thank you to visit our blog. But...
Please do not left any spam link in the comment box.