हैलो फ्रेंड्स, आज हम लेकर आए हैं फादर्स डे पर नीम पिता सा हो गया और खुद विलीन हो गए कविता लेकरआए हैं, जिनको आशा शर्मा और संगीता सेठी लिखा है, और यह आपको काफी पसंद आएगी
नीम पिता-सा हो गया
इंजी. आशा शर्मा
एक पौधा लगाया था पिता ने
नीम का, हां! कड़वे नीम का
नन्हा सा वह पौधा, बढ़ता रहा
सिर्फ पानी की खुराक पर
न चाही कभी खाद, न निराई-गुड़ाई
न ही कोई अतिरिक्त देखभाल
बस! बढ़ता रहा
पिता की उम्र के साथ-साथ
फैलाता रहा डालियां
उनकी बाहों की तरह
एक रोज, पिता नहीं रहे
लिटाया गया उन्हें
अंतिम यात्रा से पहले,
उसी नीम के नीचे
झरने लगे पीले पान
टपकने लगी निम्बोलियां
खिरने लगा ताजा बोर
समाने लगा नीम
पिता की पार्थिव देह में
नीम... पिता सा होने लगा
चूंट लेते हैं बच्चे खेल खेल में हर पत्ते
नोच लेते हैं निम्बोलियां
कभी मां भी तुड़वा लेती हैं
ताजा बोर
बाती में बाल कर,
काजल उपाड़ने के लिए
और कभी पीसकर चटनी-सा
लग जाता है छुटकी के
मुंहासे पर
बेरोजगार भाई बहा देता है
अपना अवसाद
इसके तने से पीठ टिकाकर
ससुराल को विदा होती मैं भी
लिपट जाती हूं नीम से
जैसे लिपटा करती थी पिता से
नीम पिता-सा हो गया।
खुद विलीन हो गए
संगीता सेठी
पिता से सिखाया
जमीं पर चलना
और खुद आकाश हो गए
पिता ने बनाया फूल
बगिया का मुझे
और खुद मिट्टी हो गए
पिता ने जलाया
दीपक मुझमें
और खुद अग्नि हो गए
पिता ने दिया
परिवेश मुझे
और खुद वायु हो गए
पिता ने सिखाया
तैरना भव सागर में
और खुद जल हो गए
पिता ने दी देह मुझे
पंच तत्वों की
और खुद पंच तत्वों में
विलीन हो गए
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