शब्दों की अनुभूति

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शब्दों की अनुभूति




शब्दों की अनुभूति कविता

जो कह दिया वे शब्द थे
जो नहीं कह सके
वो अनुभूति थी।
और,
जो कहना है मगर
कह नहीं सकते,
वो मर्यादा है।

जिंदगी...
जिंदगी का क्या है?
आ कर नहाया,
और नहाकर चल दिए।

पत्ते...
पत्तों-सी होती है
कई रिश्तों की उम्र,
आज हरे...
कल सूखे... क्यों न हम,
जड़ों से रिश्ते निभाना सीखें।

निबाह...
रिश्तों को निभाने के लिए,
कभी अंधा,
कभी गूंगा,
और कभी बहरा
होना ही पड़ता है।

गर्मी...
बरसात गिरी और कानों
में इतना कह गई कि
गर्मी हमेशा
किसी की भी नहीं रहती।

नसीहत...
नर्म लहजे में ही
अच्छी लगती है नसीहत।
क्योंकि,
दस्तक का मकसद,
दरवाजा खुलवाना होता है
उसे तोड़ना नहीं।

घमंड...
किसी का भी नहीं रहा,
टूटने से पहले,
गुल्लक को भी लगता है कि
सारे पैसे उसी के हैं।

खूबसूरत बात...
जिस बात पर,
कोई मुस्कुरा दे;
बात...
बस वही खूबसूरत है।

अपने...
थमती नहीं, जिंदगी कभी,
किसी के बिना।
मगर हम भी नहीं,
अपनों के बिना।


I reached home late and dad asked me : Where were you?

Me : Was in Friends house.

In Frornt of me, Dad called 10 of my Friends.

4 of them said : Yes Uncle, He was Here.

2 Said : He just left, uncle.

3 of them said : He is here only uncle, studying, shall I give the phone?

1 of them went an extra mile to say (in my voice) Yes dad, tell me what happened?!!!

Friends forver...


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