फिर हुआ ऐसा कि सब सुनसान हो गया
भीड़भाड़ वाला वो रास्ता वीरान हो गया
उड़ रहा वो परिंदा देख कर इस माहौल को
अपने ही शहर से जैसे अनजान हो गया
मर रहे हैं लोग हजारों की तादाद में
वक्त भी इंसान के लिए हैवान हो गया
रो रहा है वो मजदूर घर में बैठ कर
खतम घर में खाने का सामान हो गया
लड़ने के लिए इस भयानक महामारी से
घर में कैद सारा हिंदुस्तान हो गया!
एक व्यक्ति कोरोना से मर गया...
परलोक जाकर प्रभु से पूंछा- "प्रभु हमको काहे नहीं बचाने आए?"
प्रभु बोले - प्यारे! कभी पीएम बनकर, कभी सीएम बनकर,
कभी पुलिस बनकर, कभी नगर निगम कर्मचारी बन कर,
बीसों बार तुझे बताने के लिए आया था कि घर में बैठ जा, बच जाएगा।
अब तू कौन-सा अर्जुन है जो तुझे विराट रूप दिखाता।
भारत के लोगों को समर्पित!
इश्क भी तेरा था, और आशिक भी
कश्ती भी तेरी थी, और समन्दर भी
हम तो बैठ गए सारे नाते तोड़कर
किनारा भी तेरा था, और सहारा भी।।
मंजिल भी तेरी थी, और रास्ते भी
सपने भी तेरे थे, और ख्वाब भी
दुआ के सिवा खाली हाथ थे अब
धड़कन भी तेरी, थी और सांसें भी।।
खुशी भी तेरी, थी और गम भी
जिंदगी भी तेरी थी, और मौत भी
एक तेरे नाम से जिंदा हैं हम
आंखें भी तेरी थी, और तस्वीर भी।।
पूरी कायनात भी तेरी थी, और पल भी
हर दिन भी तेरा था, और रात भी
मैं तो सारी तुझमें मुक्कमल हो गई
खुद में भी शामिल थी, और तुझमें भी।।
"लाली मेरे लाल की जित देखूं तित लाल।
लालि देखन मै गई मैं भी हो गई लाल’
लिखने वाले ने जो भी भाव रखा हो
लेकिन एक विद्यार्थी ने लिखा...
"इन पंक्तियों मे एक महिला जो कि दादी है,
हॉस्पिटल मे अपनी नव जन्मी पोती को देखने गई,
कहती है' जिधर भी देखती हूं सबके लाल पैदा हुए थे
पर मेरे लाल के लाली पैदा हो गई,
ये सोच कर मैं गुस्से मे लाल हो गई’
हिन्दी के गुरूजी सदमें में है कि नम्बर कितने दू चेले को...
लॉकडाउन कविता
(पतियों की व्यथा)
उठो लाल अब आंखें खोलो
बर्तन मांजो कपड़े धो लो
लो झाडू उठाओ घर को बुहारो
फिर स्लैब पर पोछा मारो
न अलसाओ न आंखें मूंदो
सब्जी का आटा गूंधो
तनिक काम से न हारो
घी डालकर दाल बघारो
व्हाट्सएप पे खेल न खेलो
मोबाइल छोड़ रोटियां बेलो
तज दो ट्विटर और फेसबुक
बन जाओगे तुम पक्के कुक
फिर गमलों में पानी डालो
छत टंकी से गाद निकालो
कितनी गर्द इन पे है छाई
स्कूटर कार की करो सफाई
कुछ तो जिम्मेदारी संभालो
ये बिस्तर सारे धूप में डालो
आंगन में है मकई सुखाना
हर दो घंटे में हाथ फिराना
न छत पर व्यायाम बहाने
बिन मोबाइल जाओ नहाने
न मित्रों के इल्म सीखना
न गैंग संग सुट्टे खींचना
लिखना चाहूं कोई राइम
तो हो जाए चाय का टाइम
पहले कुढ़ के चाय बनाओ
अच्छी पर भी ताने खाओ
ये आई है अजब बीमारी
या मुझ पे है विपदा भारी
टूटा पर्वत है विपत्तियों का
घर-घर किस्सा है पतियों का।
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