तोड़ सकल अनुबंध तू
होली की डोली उठी, मौसम बना कहार।दिन कबीर गाते मिले, रातों जगा मल्हार।।
फागुन उतरा गांव में, भीतर खिला वसंत।
रातें सतवंती हुईं, दिवस हुए रसवंत।।
उत फूलों की पंखुरी, इत तितली के पंख।
लहर रंग की जब उठी, मिला सीप से शंख।।
मौसम के छज्जे चढ़ी, नवयौवन की बेल।
होली टोली में चला, तुकबंदी का खेल।।
होली में प्रतिबंध क्या, ओ मेरे व छंद!
तोड़ सकल अनुबंध तू, जोड़ नए संबंध।।
@सूर्यकुमार पांडेय
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