संत कबीर के दोहे - भोगवाद और लालच
खा सूखा खाय के, ठंडा पानी पीव।
देख पराई चुपड़ी, मत ललचाचे (लालच) जोव।।
(चूपड़ी का अर्थ - जो दूसरे के प्राप्त है, वो मेरे पास होनी चाहिए, तोही मुझे सुख मिलेगा)
आधी जो रुखी भली, सारी सोग (दु:ख) संताप।
जो चाहेगा धूपड़ी, तो बहुत करेगा पाप।।
उदर समाता अन्न लें, तनहिं समाता चीर।
अधिकहि संग्रह ना करै, ताको नाम फकीर॥
कितनी चिड़िया उड़े आकाश, दाना है धरती के पास।
मन लागा मेरा यार फ़कीरी में।
जो सुख पाऊँ हरी भजन मैं, वो सुख नाही अमीरी में।
भला बुरा सबका सुन लीजें, कर गुजरान गरीबी में॥
बहुत जतन धन करे, सब ले जाय नसाय।
कबीर संचय सूत्र धन, अंत चौर ले जाय।।
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