वर्ष के दो महीने
दिसंबर और जनवरी
एक वर्ष के अंत की दस्तक देता
दूसरा वर्ष के प्रारम्भ का आगाज़
जैसे दिन और रात का बनना
यादें दे जाता है
दूसरा उम्मीद की डोर साथ लाता है
एक को अनुभव है
दूसरे को विश्वास का साथ है
यूं तो दोनों एक ही जैसे हैं
जैसे एक-दूसरे की प्रतिलिपि
उतनी तारीख़ें,
उतने ही दिन
उतना ही समय,
उतनी ही सर्दी
उतना ही दिन-रात का मेल
पर पहचान दोनों ही अलग है
एक यादों का किस्सा है
दूसरा वादों का नग़मा है
दोनों अपना कार्य बख़ूबी करते हैं
दिसंबर मुक्त होता है
जनवरी पूरे साल का भार ढोता है
जो दिसंबर दे जाए
जनवरी उसे सहर्ष लेता है
जनवरी को दिसंबर तक लम्बा सफर करना है
वहीं दिसंबर एक ही क्षण में
जनवरी में तब्दील हो जाता है
देखा जाए तो हैं ये मात्र दो महीने
लेकिन दोनों ही शेष महीनों को जोड़कर रखते हैं
दोनों वक़्त के राही
पर दोनों की मंजि़ल अलग-अलग
दोनों का काम अलग-अलग
दोनों की बात निराली है।
कविता : शोभा रानी गोयल
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