तुम निकले जो आज घर से,
फरमाइशों के फेहरिस्त लेकर...
बटुए में बंद करके वो नोट हजार,
तु निकले भरी दोपहरी,
खरीदने बाजार, इस मॉडन चकाचौंध में,
इस धक्का मुक्की में,
शायद तुम लेना भूल गए,
ये कच्ची मिटटी के पक्के दिए,
तुम साथ ले जाना भूल गए,
भूल गए बचपन में इनसें
कैसे घर रोशन किया करते थे,
तु जिद करके बार—बार
दो दिए ज्यादा लिए करते थे,
इसी आस की मिटटी लेकर
ये गरीब आशा के दिए बनाते हैं,
और हर दिवाली ये जररा जररा
इसी बाजार बिखर जाया करते है,
इस दिवाली आप भी एक
उम्मीद का दिया जलाएं,,
किसी ओर की दिवाली को,
भी रोशन बनाएं,,
हैप्पी दिवाली
फरमाइशों के फेहरिस्त लेकर...
बटुए में बंद करके वो नोट हजार,
तु निकले भरी दोपहरी,
खरीदने बाजार, इस मॉडन चकाचौंध में,
इस धक्का मुक्की में,
शायद तुम लेना भूल गए,
ये कच्ची मिटटी के पक्के दिए,
तुम साथ ले जाना भूल गए,
भूल गए बचपन में इनसें
कैसे घर रोशन किया करते थे,
तु जिद करके बार—बार
दो दिए ज्यादा लिए करते थे,
इसी आस की मिटटी लेकर
ये गरीब आशा के दिए बनाते हैं,
और हर दिवाली ये जररा जररा
इसी बाजार बिखर जाया करते है,
इस दिवाली आप भी एक
उम्मीद का दिया जलाएं,,
किसी ओर की दिवाली को,
भी रोशन बनाएं,,
हैप्पी दिवाली
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