यह पंक्तियां साहिर लुधियानवी द्वारा लिखी गई मशहूर कविता "कभी कभी" का हिस्सा हैं। इसमें कवि कल्पना करता है कि अगर जीवन के दुख और निराशा को छोड़कर, प्रेमिका के प्यार भरे नज़ारे और उसकी जुल्फों की छांव में गुजरा होता, तो जीवन खुशहाल और हरा-भरा हो सकता था। लेकिन, वह कहते हैं कि ऐसा हो नहीं सका।
कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है
कि जिंदगी तेरी जुल्फों की नरम छांव में गुजरने पाती
तो शादाब हो भी सकती थी।
यह रंज-और-गम की सियाही जो दिल पे छाई है
तेरी नजर की सुहां में खो भी सकती थी।
मगर ये हो न सका
मगर ये हो न सका और अब ये आलम है
कि तू नहीं, तेरा गम तेरी जुस्तजू भी नहीं।
गुजर रही है जिंदगी कुछ इस तरह जैसे,
इससे किसी के सहारे की आरजू भी नहीं
ना कोई राह, न मंजिल, न रौशनी का सुराग
भटक रहीं है अंधेरों में जिंदगी मेरी
इन्ही अंधेरों में रह जाऊंगा मैं कभी खो कर
मैं जानता हूं मेरी हम-नफस, मगर यूंही
कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है
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शादाब /Shadab=fresh,delightful
रंज/Ranj=distress,grief
जुस्तजू /Justjoo=desire
हम-नफस/Hum-nafas=companion,friend
पंक्तियों का अर्थ
- "कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है कि जिंदगी तेरी जुल्फों की नरम छांव में गुजरने पाती तो शादाब हो भी सकती थी।": कवि की कल्पना है कि अगर उसका जीवन उसकी प्रेमिका की जुल्फों की ठंडी और नरम छाया में बीता होता, तो वह हमेशा खुशहाल और हरा-भरा रहता।
- "यह रंज-और-गम की सियाही जो दिल पे छाई है तेरी नजर की सुहां में खो भी सकती थी।": वह कहते हैं कि उनके दिल पर छाए हुए दुख और गम का अंधेरा, प्रेमिका की प्रेम भरी और चमकदार नजरों में खो सकता था।
- "मगर ये हो न सका": कवि यह स्वीकार करता है कि यह सब सिर्फ एक कल्पना है और ऐसा कभी नहीं हो सका।
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