सावन को आने दो
प्रियंका सौरभ
सावन को आने दो,
बूंदों को गाने दो,
मन के सूने कोनों में
हरियाली छाने दो।
भीगी धूप में
खिलती मुस्कानें हों,
तन क्या, मन भी
तनिक भीग जाने दो।
झूले की पींगों में
बचपन पुकारे,
मेहंदी की खुशबू से
सपने संवारें।
घुंघुरुओं की छम-छम में
राग बरसने दो,
छज्जों से उतरते
गीतों को सजने दो।
कजरी की तान में
व्यथा है छिपी,
प्रेमिका की आंखों में
सावन की नमी।
संदेश हो पिया का
या हो रूठी बहार,
हर बूंद कहे -
"अब लौट आओ यार।'
धरती के माथे पर
बूंदों का तिलक,
पत्तों पे लहराए
आस्था की झलक।
पेड़ कहें- "थोड़ी देर
और ठहरो',
बादल कहें- "अब
अश्रु बन बहो।'
सावन को आने दो,
भीतर उतरने दो,
भीतर के मरुथल को
हरियाने दो।
इस बार सिर्फ
छाते मत खोलो,
दिल के दरवाजे भी
खुल जाने दो।
0 Comments
Thank you to visit our blog. But...
Please do not left any spam link in the comment box.