गीत वसंती
कन्हैया साहू ‘अमित’
बांध बोरिया बिस्तर अपना,
दुबक चला जड़काला।
अब वसंत आया अलबेला,
दिखता नया निराला।
बाग-बगीचे, कानन, झुरमुट,
बरबस ही बौराये।
यौवन व्यापक यत्र-तत्र तब,
राग वसंती गाए।
कामदेव युवराज स्वागतम्,
स्वीकारो वरमाला।
अब वसंत आया अलबेला,
दिखता नया निराला।
नई कोपलें, नवल यौवना,
खिलखिल खिलती कलियां।
भांत-भांति मकरंद फूल पर,
झूमें भ्रमर तितलियां।
रस पीकर बहके फिरते हैं,
जैसे मय का प्याला।
अब वसंत आया अलबेला,
दिखता नया निराला।
वसंत आ गया
व्यग्र पाण्डे
बस कर सर्द अंत अब
वसंत आ गया है
धूनी हटाले संत अब
वसंत आ गया है
नहीं चलेगी ठकुराई
यूं तेरी ठिठुराई की
सर्दी छोड़ निठुराई
अब वसंत आ गया है
सरद को हरद लगाए
सूरज की किरणें
धुंध के उठ गए डेरे
अब वसंत आ गया है
खिलने लगे हैं फूल
हर शाख पर मन से
गलन के गए दिन
अब वसंत आ गया है
माना कि सर्द के पास भी बहुतेरे रंग थे
फीके पड़े वो सब
अब वसंत आ गया है
मौसम खुशनुमा लगे दिशाएं मुस्कुराती सी
खेत दे रहे गवाह
अब वसंत आ गया है
धूजती थी लेखनी
व्यग्र चलने के नाम पर
दौड़ने लगी है ये भी
अब वसंत आ गया है
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