वसंत कहो इक नई कहानी
डॉ. महिमा श्रीवास्तव
पीली सरसों, धानी चुनर
गेंदा, गुड़हल, पीत कनेर
बिरहा- मिलन देर सबेर।
ये सब बातें तो हुई पुरानी
वसंत कहो इक नई कहानी
सीख कोई हो बड़ी सयानी।
धुंध के घनेरे सायों को चीर
हिम सी जमी मन की पीर
आओ दुख की नदिया तीर।
वासंती उमंगें मारे हिलोर
गीत तुहारे बनें चितचोर
कृषक बालाएं नाचें विभोर।
तन-मन से क्लांत की
विवश हारे इंसान की
बनना पीताभ विश्वास की।
अबके जम कर खुशी लाना
हर घर से रोग-शोक भगाना
वसंत इस बार ऐसा कर जाना।
फूलों पर रंग चढ़ा
शशि मित्तल
लो फिर आया वसंत
मन में जागी आस अनंत!
फूलों पर रंग चढ़ा
खिल रही कली-कली,
भंवरा भी हो मतवाला
डोल रहा डाली-डाली!
खेतों में सरसों फूली
आम्र में आए बौर,
कोयल कूहकी कुहू-कुहू,
मन हो गया सराबोर!
मन मयूर बन नृत्य करें
उपवन-उपवन थिरक रहा,
हय त्याग वय बंधन छूटे
नव यौवन का एहसास भरा!
फूलों से शृंगार हुआ अब
मतवाली हुई प्रकृति सुंदरी,
चंचल नयन, हरित वसना
कण-कण में उड़ेले
मद की गगरी।
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