दोहावली- वक्त के दोहे

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दोहावली- वक्त के दोहे



दोहावली- वक्त के दोहे

नई सदी में मिल रही, दर्द भरी सौगात।
बेटा कहता बाप से, तेरी क्या औकात।।

पानी आंखों का मरा, मरी शर्म और लाज।
बहे बहू अब सास से, घर में मेरा राज।।

मन्दिर में पूजा करे, घर में करे कलेश।
बाप तो बोझा लगे, पत्थर लगे गणेश।।

सास ससुर लाचार है, बहू न पछे हाल।
डेरे में सेवा करे, बाबा हुआ निहाल।।

अब तो अपना खून भी, करने लगा कमाल।
बोझ समझ मां-बाप को, घर से रहा निकाल।।

मां की ममता बिक रही, बिके पिता का प्यार।
मिलते हैं बाजार में, वफा बेचते यार।।

भाई-भाई में हुआ, अब कुछ ऐसा बैर।
रिश्ते टूटे खून के, प्यारे लगते गैर।।

रिश्तों को यूं तोड़ते, जैसे कच्चा सूत।
बंटवारा मां-बाप का, करने लगे कपूत।।

वक्त पड़े पर साथ दे, होता सच्चा यार।
यादव सच्चे यार हित, जीवन करो निसार।।



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