बेहिसी के ज़ख्म

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बेहिसी के ज़ख्म



बेहिसी के ज़ख्म 

प्यार के हर रंग को दस्तूर होना चाहिए।
ये गुज़ारिश है इसे मंजूर होना चाहिए।

फूल से चेहरे पर इतनी बरहमी अच्छी नहीं,
जानेमन गुस्से को अब काफूर होना चाहिए।

आजकल संजीदगी से अहले-दिल कहने लगे,
बेहिसी के ज़ख्म को नासूर होना चाहिए।

काटते रहते हैं जो बेरूह लफ्ज़ों के पहाड़,
उनको शायर तो नहीं मज़दूर होना चाहिए।

शोहरतों के फूल क़दमों में पड़े हैं देखिए,
आप को थोड़ा-बहुत मग़रूर होना चाहिए।

दिल के क़िस्से में चटखना-टूटना है सब फूजूल,
अब तो इस शीशे को चकनाचूर होना चाहिए।

कैसे-कैसे लोग ना क़दरी से पीले पड़ गए,
जिनको दुनिया में बहुत मशहूर होना चाहिए।

  डॉ. अंजुम बाराबंकवी 

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