बेवजह... अन्तिम इच्छा...

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बेवजह... अन्तिम इच्छा...



अन्तिम इच्छा

'मरते वक्त तुम्हारी अंतिम इच्छा क्या थी?'
स्वर्गस्थ एक आत्मा ने दूसरी से पूछा।
'बस एक ही!' जवाब में आह भरी गई,
'जैसे-तैसे रुपयों का जुगाड़ कर बेटे को मेडिकल में दाखिला दिलाया था।'
आह अब दर्द में बदल चुकी थी,
'उसकी डिग्री, उसका क्लीनिक देखने की बड़ी इच्छा थी पर अब कैंसर ने सब ख़त्म कर दिया...'
'ओह!'
'तुम अपनी कहो' यादों के झरोखों से बाहर आते हुए दूसरी आत्मा ने पूछा,
'तुम्हारी अंतिम इच्छा क्या थी, मरते समय?'
'मेरी... हाहाहा' पहली आत्मा खीज भरे स्वर में हंसी,
'तुम्हारा मेरा कोई मुकाबला नहीं, मेरी अंतिम इच्छा सुनोगे तो तुम भी हंसोगे... मरते वक्त मेरी इच्छा थी कि कोई मुझे कंबल ओढ़ा दे, मोटा-नरम, गरमागरम कंबल...ठंड लगने से सड़क पर मौत हुई थी न मेरी।'

  संतोष सुपेकर



बेवजह

सफ़र में कुछ चीज़ें
बे-वजह ख़रीदने की
आदत डाल लो...
फूल की माला
बिही, सीताफल, जामुन
कैंथा, बेरी, इमली
घास-फूस के खिलौने...
बेचते बच्चों को
मेहनत और ईमानदारी का
रास्ता मिल जाएगा।

  रूपेंद्र पटेल 

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