प्रेम

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प्रेम

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दुनिया की बिसात पर प्रेम
अतुल चतुर्वेदी
 
कौन कहता है दुनिया की बिसात पर जीता है प्रेम
उसे तो हमेशा घृणा के प्यादों ने
षड्यंत्र के घोड़ों ने चतुर ढाई चाल से मात दी है
प्रेम के पंथ को कराल कह के
थक गए महाकवि
डगर पनघट की कठिन कह
चेताते रहे
तो भी नहीं माने पागल प्रेमी
उन्हें जुनून था एक खूबसूरत युद्धों से महफूज दुनिया बसाने का
सबको अपनी उदात्त प्रेमिल बारिश में भिगोने का
और स्वयं निर्मल धार में भीग जाने का
लेकिन कौन समझता है कोयल की कूक
मोर की पीहू पीहू
चकवे की पीड़ा को
सब समझते हैं चल रहा है जगत
उनके साम दाम दंड भेद से
जबकि सच्चाई यह है कि जो भी है गर्मजोशी रिश्तों में
बिखरी दिखती है हंसी और गति
यह सब प्रेम रहट से उलीचे
जल का परिणाम है
प्यार तो यूं ही नाहक बदनाम है।

प्रेम
बी एल मीणा

बहुत छोटा सा शब्द है ‘प्रेम’,
पर जितना छोटा है यह,
विस्तार इसका उतना ही अनंत।
इतना गहरा, कि कोई नाप न सका इसकी गहराई।
जो प्रेम में डूबा, वो डूबता ही चला गया, और जो डूबा,
वो बेखबर ही रहा अपनी डुबकी से।
प्रेम का रस ऐसा है,
जो प्यास बुझाकर भी और
प्यास बढ़ा देता है।
जो प्रेम करता है,
उसे लगता है वह ऊंचाइयों को
छू रहा है,
पर असल में वह प्रेम के सागर में,
हर क्षण नया मोती खोज रहा है।
प्रेम की एक सच्चाई है-
यह शर्तों पर नहीं टिकता।
यह वह एहसास है,
जो असुंदर को सुंदर बना देता है।
सूरज के आलोक सा,
यह अंधकार को मिटाकर,
दुनिया को रोशन कर देता है।
प्रेम, बस प्रेम ही है-
निस्वार्थ, अनंत और अजेय।


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