हैलो फ्रेंड्स, सबसे पहले तो आप सभी को नए साल की ढेर सारी शुभकामनाएं, और आप सभी को हमारे साथ जुड़े रहने के लिए धन्यवाद। आज हम आपके लिए लेकर नए साल की कविता जो आपको पसंद आएगी
हम दुआ करते हैं कि आप आने वाले
साल के 12 महीने खुश रहें
52 हफ्ते मुस्कुराते रहें
365 दिन आप पर ईश्वर मेहरबान रहें
8760 घन्टे किस्मत आप का साथ दें
525600 मिनट कामयाबी आप के कदम चूमें
और 31536000 सेकण्ड हमारी दुआ आप के साथ रहें
ऐ नए साल बता, तुझमें नयापन क्या है
हर तरफ ख़ल्क़ ने क्यूं शोर मचा रक्खा है
रौशनी दिन की वही, तारों भरी रात वही
आज हम को नज़र आती है हर इक बात वही...
ऐ नए साल बता, तुझमें नयापन क्या है
हर तरफ ख़ल्क़ ने क्यूं शोर मचा रक्खा है
रौशनी दिन की वही, तारों भरी रात वही
आज हम को नज़र आती है हर इक बात वही
आसमाँ बदला है, अफ़सोस, ना बदली है ज़मीं
एक हिंदसे का बदलना कोई जिद्दत तो नहीं
अगले बरसों की तरह होंगे क़रीने तेरे
किस को मालूम नहीं बारह महीने तेरे
जनवरी, फ़रवरी और मार्च पड़ेगी सर्दी
और अप्रैल, मई, जून में होगी गर्मी
तेरा मन दहर में कुछ खोएगा, कुछ पाएगा
अपनी मीआद बसर कर के चला जाएगा
तू नया है तो दिखा सुबह नयी, शाम नयी
वरना इन आंखों ने देखे हैं नए साल कई
बे-सबब देते हैं क्यूं लोग मुबारकबादें
ग़ालिबन भूल गए वक़्त की कड़वी यादें
तेरी आमद से घटी उम्र जहां में
सब की 'फ़ैज़' ने लिक्खी है यह नज़्म
निराले ढब की - फ़ैज़ लुधियानवी मायने
ख़ल्क़ = मानवता, हिंदसे = संख्या, जिद्दत = नया-पन,
अगले = पिछले/गुज़रे हुए, क़रीने = क्रम, दहर = दुनिया,
मीआद = मियाद/अवधि, बे-सबब = बे-वजह,
ग़ालिबन = शायद, आमद = आना, ढब = तरीक़ा
"कद्र'' करनी है तो "जीते जी'' करें
"मरने'' के बाद तो "पराए'' भी रो देते हैं
आज "जिस्म'' के ""जान'' है
तो देखते नहीं हैं "लोग''
जब "रूह'' निकल जाएगी तो
"कफन'' हटा-हटा कर देखेंगे
किसी ने क्या खूब लिखा है
“वक्त” निकलकर “बातें” कर लिया करो “अपनों से”
अगर “अपने ही” न रहेंगे तो “वक्त” का क्या करोगे
“गुरूर” किस बात का... “साहब”
आज “मिट्टी” के ऊपर, कल “मिट्टी” के नीचे
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