दीपावली
अर्चना मंडलोई
रंग-रोगन और पुताई
घर-घर में हुई खूब सफाई
आंगन-द्वार अल्पना सजाई।
देखो-देखो दीपावली आई।।
बाजारों में रौनक छाई,
रंग-बिरंगी झालर सजाई
गुजरी निकाली देखो सजकर
दीपमेखला सजी हैं घर-घर।।
देखो-देखो...।
लड्डू, पेड़ा, बर्फी, चक्की
मां ने गुझिया खूब बनाई
सेव, चकली, मठरी के क्या कहने
धानी, खील-बतासे खूब सजे हैं।।
देखो-देखो...।
सुन्दर कपड़े पहने बच्चे
देखो कैसे इठलाते।
चकरी, अनार और फूलझड़ी।
आतिशबाजी के भी क्या कहने।।
देखो-देखो...।
दीप जले द्वार-द्वार पर
रोशनी गगन तक छाई
डर के मारे भाग गई
रात अमावस काली।।
देखो-देखो...।
छम-छम करती लक्ष्मी आईं
आशीष पाकर धन्य जन-जन।
हर्षित मन खुशहाली छाई
देखो देखो दीपावली आई।।
दीप जलाएं
कुलदीप सिंह भाटी
हर्षित मन से त्योहार मनाएं।
जगमग-जगमग दीप जलाएं।
मिटा अपनों के बीच की दूरिया।
बांटे हम एक-दूजे को खुशियां।
आतिशी-सी फैले यह रोशनी।
कोई कष्ट और न हो परेशान।
उखाड़ फेंके वो कलह के कांटे।
आपस में हम सबको जो बांटे।
हो दूर तक दीपों की कतार।
विषाद भाव का रुके विस्तार।
जाकर पूछें बेहालों के हाल।
सब की खुशियां रहें खुशहाल।
आनन्द उत्स की आभा फैलाएं।
जगमग-जगमग दीप जलाएं।
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