ये रचना भीलवाड़ा की हिंदी व्यख्याता मधु शर्मा ने कोरोना काल के दौरान लिखी है, जिसमें उन्होंने एक शिक्षक की भावना को व्यक्त किया है। जो कि अपनी पूरी मेहनत द्वारा बच्चों के भविष्य का निर्माण करता है, किन्तु फिर भी समाज द्वारा उसको वो सम्मान नहीं मिलता है जिसका वह हकदार है। और यह सब केवल और केवल कुछ अपवाद के कारण होता है।
शिक्षक की व्यथा!!!
कोई नहीं सुनने वाला,
कोई नहीं लिखने वाला,
किससे कहें दिल की बात,
शिक्षक इस कदर निराश हो गए हैं,
इस कोरोनो काल में वो,
कठपुतली समान हो गए हैं,
सबसे बेइज्जत हो रहे हैं,
फिर भी हर कार्य कर रहे हैं,
बच्चो के भविष्य के लिए शिक्षक,
हर सम्भव प्रयास कर रहे हैं,
पोर्टफोलियो के लिए लगे हुए हैं,
स्माइल कॉलिंग में जुड़े हुए हैं,
कोई भी बच्चा वंचित न रहें
पोषाहार वितरण में रमे हुए हैं,
अभिभावक परेशान से हैं,
क्यों हर दिन फोन कर देते हो,
सुबह सुबह काम पर जाने के समय,
हमें क्यों परेशान कर देते हो,
कोई कहता है हमारे पास अनाज ही नहीं,
कोई कैसे रिचार्ज करवाएंगे,
कोई कह देता है कि,
एंड्रॉयज फोन नहीं है मेडम जी,
क्या आप उपलब्ध करवाएंगे,
कोई कहता हैं,
मेडम जी, खेती का काम जरूरी है,
बच्चे तो बाद में भी पढ़ जाएंगे,
कोई कहती है, जिंदा रहे तभी ही तो,
बच्चे कुछ बन पाएंगे,
इतने सब कुछ के बाद में भी,
शिक्षक हर एक फरमान मान रहे हैं,
अपनी जान जोखिम में डाले रहे हैं,
घर घर जाकर बच्चों के,
उनका गृह कार्य जांच रहे हैं,
मालूम है हमें, ये सब एहसान नहीं है,
किन्तु इतना कर के भी,
तोहमतों का सिलसलिया जारी है,
हर ओर से यही आवाज है,
इस साल शिक्षकों ने बहुत मौज मारी है,
ये सुन कर शिक्षक बहुत
उदास हो जाता है,
ओर ये प्रश्न दिल दिमाग को
बैचेन करता है कि
ये समाज क्यों भविष्य निर्माता को
हर वक्त बेइज्जत करता जाता है,
कुछ बेपरवाह शिक्षकों के कारण
पूरा शिक्षक समाज क्यों दोषी कहलाता हैं!!!
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