ये कविता भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट ट्विटर पर अपनी एक कविता शेयर की। जिसको शेयर करते हुए उन्होंने लिखा ‘महाबलीपुरम में सवेरे तट पर टहलते-टहलते सागर से संवाद करने खो गया। ये सवांद मेरा भाव विश्व है। इस संवाद भाव को शब्दबद्ध करके आपसे साझा कर रहा हूं।
हे... सागर!!!
तुम्हें मेरा प्रणाम!
तू धीर है, गंभीर है,
जग को जीवन देता, नीला है नीर तेरा।
ये अथाह विस्तार, ये विशालता,
तेरा ये रूप निराला।
हे... सागर!!!
तुम्हें मेरा प्रणाम!
सतह पर चलता ये कोलाहल, ये उत्पात,
कभी ऊपर तो कभी नीचे।
गरजती लहरों का प्रताप,
ये तुम्हारा दर्द है, आक्रोश है
या फिर संताप?
तुम न होते विचलित
न आशंकित, न भयभीत
क्योंकि तुममें है गहराई!
हे... सागर!!!
तुम्हें मेरा प्रणाम!
शक्ति का अपार भंडार समेटे,
असीमित ऊर्जा स्वयं में लपेटे।
फिर भी अपनी मर्यादाओं को बांधे,
तुम कभी न अपनी सीमाएं लांगे!
हर पल बड़प्पन का बोध दिलाते।
हे... सागर!!!
तुम्हें मेरा प्रणाम!
तू शिक्षादाता, तू दीक्षादाता
तेरी लहरों में जीवन का
संदेश समाता।
न वाह की चाह,
न पनाह की आस,
बेपरवाह सा ये प्रवास।
हे... सागर!!!
तुम्हें मेरा प्रणाम!
चलते-चलते जीवन संवारती,
लहरों की दौड़ तेरी।
न रुकती, न थकती,
चरैवती-चरैवती, चरैवती का मंत्र सुनाती।
निरंतर... सर्वत्र!
ये यात्रा अनवरत,
ये संदेश अनवरत।
हे... सागर!!!
तुम्हें मेरा प्रणाम!
लहरों से उभरती नई लहरें।
विलय में भी उदय,
जनम-मरण का क्रम है अनूठा,
ये मिटती-मिटाती, तुम में समाती,
पुनर्जन्म का अहसास कराती।
हे... सागर!!!
तुम्हें मेरा प्रणाम!
सूरज से तुम्हारा नाता पुराना,
तपता-तपाता,
ये जीवंत-जल तुम्हारा।
खुद को मिटाता, आसमान को छूता,
मानो सूरज को चूमता,
बन बादल फिर बरसता,
मधु भाव बिखेरता।
सुजलाम-सुफलाम सृष्टि सजाता।
हे... सागर!!!
तुम्हें मेरा प्रणाम!
जीवन का ये सौंदर्य,
जैसे नीलकंठ का आदर्श,
धरा का विष, खुद में समाया,
खारापन समेट अपने भीतर,
जग को जीवन नया दिलाया,
जीवन जीने का मर्म सिखाया।
हे... सागर!!!
तुम्हें मेरा प्रणाम!
नरेन्द्र मोदी
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