आसमान में सिर उठाकर
घने बादलों को चीरकर
रोशनी का संकल्प लें
अभी तो सूरज उगा है।
दृढ़ निश्चय के साथ चलकर
हर मुश्किल को पार कर
घोर अंधेरे को मिटाने
अभी तो सूरज उगा है।
विश्वास की लौ जलाकर
विकास का दीपक लेकर
सपनों को साकार करने
अभी तो सूरज उगा है।
न अपना न पराया
न तेरा न मेरा
सबका तेज बनकर
अभी तो सूरज उगा है।
आग को समेटते
प्रकाश को बिखेरता
चलता और चलाता
अभी तो सूरज उगा है।
विकृति ने प्रकृति को दबोचा
अपनों से ध्वस्त होती आज है
कल बचाने और बनाने
अभी तो सूरज उगा है।
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1 Comments
Thankyou so much for this amazing work I was finding this poem and then I saw this it was helpful good work keep it up
ReplyDeleteThank you to visit our blog. But...
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