सांप, सांप, सांप
एक पैसेंजर ट्रेन इंदौर से भीलवाड़ा की तरफ रवाना होनी थी।
रात दस बजे सभी डिब्बे खचाखच भर गए।
हमारे एडमिन जी भी चढ़ तो गए, पर जब उन्हें बैठने तक की जगह नहीं मिली तो उन्हें एक उपाय सूझा।
उन्होंने ‘सांप, सांप, सांप' चिल्लाना शुरू कर दिया। यात्री लोग इर के मारे सामान सहित उतर कर दूसरे डिब्बों में चले गए।
वे ठाठ से ऊपर वाली सीट पर बिस्तर लगा कर लेट गए।
दिन भर के थके थे सो जल्दी है नींद भी आ गई।
सवेरा हुआ, चाय, चाय की आवाज पर वे ठे चाय ली और चाय वाले से पूछा कि कौन सा स्टेशन आया है।
तो चाय वाले ने बताया, इंदौर है। फिर पूछा, इंदौर से तो रात को चले थे?
चाय वाला बोला, 'इस डिब्बे में सांप निकल आया था, इसलिए इस डिब्बे को यहीं काट दिया था।
यह लो ईंट
कंजूस, दुकानदार से - ऐसा साबुन दो, जो घिसे कम और लगाते से चेहरा
गुलाबों सा लाल हो जाए।
दुकानदार - यह लो ईंट।
मैं रास्ता भूल गया हूं
संता के घर एक बिल्ली रहती थी, जिससे वह बहुत परेशान था,
एक दिन संता उस से तंग आकर उसे जंगल में। छोड़ आता है,
परन्तु संता के घर पहुंचने से पहले वह बिल्ली घर लौट आती है।
यह देख संता दुबारा उस बिल्ली को और दूर जंगल में छोड़ आता है,
पर फिर वैसा ही होता है और वह बिल्ली फिर वापस घर पहुंच जाती है यह देख संता को बहुत गुस्सा आता है,
तो वह इस बार बिल्ली को अपनी गाड़ी में डाल कर और घने जंगल में ले जा कर छोड़ देता है,
और कुछ देर बाद अपनी पत्नी को फोन करता है और पूछता है; क्या बिल्ली घर आ गई है?
जीतो - हां, वह फिर पहुंच गई है।
संता- ठीक है तो उसे कहो मुझे आकर ले जाए, मैं रास्ता भूल गया हूं।
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