एक दिन पड़ोस का हरयाणवी छोरा आ के बोल्या-
" रे चाचा, अपनी इस्त्री दे दे... "
चाचा ने अपनी जनानी की ओर इसारा करया और बोला- " ले जा, वा बैठी.. "
छोरा चुप चाप देखन लाग्या...
बोला- " चाचा यो नहीं, कपड़े वाली.."
चाचा बोल्या- " भले मानस, यो तन्ने बगेर कपड़े दिखे है के ??? "
छोरा गुस्से में चीखा- " रा चाचा
बावला ना बन, करंट वाली इस्त्री.."
चाचा- " बावले, हाथ ते लगा के देख...जे ना मारे करंट, फेर कहिये..."
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