गर्मी के दोहे

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गर्मी के दोहे

हैलो फ्रेंड्स, गर्मी का मौसम शुरू हो गया है और तपन अभी से अपने चरम पर है। गर्मी ने सब ओर अपना तांडव मचा रखा है। जिससे दिनभर घर से बाहर निकला भी मुश्किल हो गया है। गर्मी की शुरुआत से में एसी, कूलर तक भी फेल हो गए हैं। इसी को लेकर आपके लिए लेकर आए हैं कुछ "गरमी के दोहे" जिनको लिखा है मनोज खरे ने, जो आपको बहुत ही पसंद आएंगे।

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गर्मी के दोहे
मनोज खरे

सूरज का चाबुक चला, धरती लहूलुहान।
तड़के से ही खुल गई, 'लू' की थोक दुकान।।

ताल, नहर, पोखर, नदी, सब के सब गए सूख।
फिर भी जाने धूप की, मिटती न ये भूख।।

गर्म हवाएं कर रहीं, कर्फ्यू का एलान।
सन्नाटा है शहर में, सूनी है टहलान।।

शहर-गांव भट्टी हुए, हर घर हुआ अलाव।
हरियाली है लुट गई, पेड़ों के तन घाव।।

हवा हुई है जिला-बदर, ठंड़क है तड़ीपार।
ग्रीष्म देव ये फैसला, पढ़ते भर हुंकार।।

राहगीर जाए कहां, खुद पेड़ तलाशे छांव।
लम्बी इतनी दोपहर, दूर रात का गांव।।

थोड़ा-सा जो दिन चढ़ा, बरस रहे अंगार।
बड़ा मुनाफा कमा रहा, गर्मी का व्यापार।।

नदियां अब फिर कब भरे, पूछ रही है नाव।
सूखी मिट्टी कब तलक, रहेगी मेरा ठांव।।

गला प्यास से सूखता, व्याकुल करता ताप।
बेचैनी कितनी बढ़ी, कोई न पाया नाप।।

पस्त हुआ है आदमी, पंछी रहे हैं हाफ।
काट दिए जंगल सभी, सूरज करें न माफ।।

आए अर्जुन फिर कोई, धरती को मारे तीर।
किसी 'भीष्म' को तो मिले, पीने को ठंड़ा नीर।।

फिर से लेकर आइए, भागीरथ 'गंगा' साथ।
कल भी सबको जल मिले, भविष्य जोड़ता हाथ।।

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Suraj ke chabuk chala, dharti lahuluhan
tadake hi khul gai, loo ki thok dookan.

Taal, Nahar, Pokhar, Nadi sab ke sab gaye sookh
Fir bhi jaane dhoop ki, mitati nahin bhookh.

Garm hawayen kar hari, Carfue ke Elan
Sannata hai shahar mein, sooni hai Tahlan.

Shahar-Gaon Bhatti guye, har Ghar hua Alaw
Hariyali hai lut gai, Pedon ke tane ghav.

Hawa hui hai jila-badar, Thandak hai Tadipaar
Grishm Dev ye Faisla, Padte bhar Hunkar.

Rahgaeer jaye kahan, khood ped talashe Chhanw
Lambi Itani Doophar, Door Raat ka Gaon.

Thoda-sa jo din Chada, Baras Rahe Angaar
Bada Munafa Kama raha, Garmmi ka Vyaapar.

Nadiyan ab fir kab bharem pooch rahi hai naav
Sookhi Mitti kab talak, Rahegi mera Thanv.

Gala Pyas se sookhta, Vyakul karta taap
Bechaini kitani badhi, koi n paya naap.

Past hua hai aadami, Panchi rahe hain haaf
kaat diye jungal sabhi, suraj kare n maaf.

Aaye Arjun fir koi, dharti ko mare teer
kisi 'Bhishm' ko to mile, peene ko thanda pani.

Fir se lekar aaiye, Bhagirath 'Ganga' sath
Kal bhi sabko Jal mile, Bhavishya jodta haath.


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