जब बेटी विदा हो जाएगी
शमशाद इलाही अंसारी
ये घर दरो दीवार सब तरसेंगे
जब बर्तन खन खन खनकेंगे सारे
पकवान फीके पड़ जाएंगे,
जब बेटी घर से विदा हो जाएंगी।
बात-बात पर उसका नाम मेरी जुबां पे
कभी तेरी जुबां पे
सांसें बहन की अटकी रह जाएंगी
जब बेटी घर से विदा हो जाएगी।
वो जो दिन भर लड़ता था भैय्या
पापा जिसको धमकाते थे
ताकेगा दीवारों को चुपचाप
जब बेटी घर से विदा हो जाएगी।
फूलों की रंगत तब कैसी होगी
खुशबू भी फिर न सुहाएगी
चिड़ियों की चहक भी रुलाएगी
जब बेटी घर से विदा हो जाएगी।
दादा की चाय की प्याली भरी भी लगेगी अब खाली
दादी गुमसुम हो जाएगी।
जब बेटी घर से विदा हो जाएगी।
रख कर सिर पर बेटी के हाथ
बस बाप दुआ देता रह जाएगा
मां बिलखती हुई रह जाएगी
जब बेटी घर से विदा हो जाएगी।
शमशाद इलाही अंसारी
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