ये धूप मेरे घर तक भी आए तो अच्छा है
रिश्तों की सीलन को सुखाए तो अच्छा है
जो आंधियां अक्सर छप्पर उड़ाया करती हैं
एक दफे मेरा अना* भी उड़ाए तो अच्छा है
रात, सुबह को सुबह, रात को भूलाए तो अच्छा है
दो पहर दुनिया हमें भी भुलाए तो अच्छा है
रूदाली कमरों में सांसे जब जब्त हैं जैसे
ये बारिश आंखों से बरस जाए तो अच्छा है
तकल्लुफ करके आजिज हो गए हैं सब
रस्म-ओ-रिवाज की दीवार गिराएं तो अच्छा है
ये उम्र खतरनाक है, देखभाल के रहिए
इस दिल के मामले में सम्भल के रहिए
क्या पता कब हवा बदल जाए जहां पे
सो किस्मत का सिक्का उछाल के रहिए
जज्बा, जुनून, पागलपन, दीवानगी जो भी कहें
मौका जब भी मिले, इसे निकाल के रहिए
कोई हद नहीं होती इस मुआमले में
दुनिका जो कहे, आप कमाल के रहिए
@सलिल सरोज
अर्थ- *अना- अहांकार
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