लाजवाब
देखी हैं ऐसी शोखियां उसके शबाब में
सारे जवाब मिल गए उस लाजवाब में
देखे चमन में फूल कई बू-ओ-रंग के
सब जैसे आ के मिल गए इक गुलाब में
कुदरत खुदा की देखिए, क्या क्या बना दिया
सारे हिसाब मिल गए उस बेहिसाब में
‘निर्झर’ वो रूप अनूप है और प्यार बेशुमार
फिर क्यों न मस्त हो कोई उसकी शराब में
रोग
रोग ऐसे भी गम-ए-यार से लग जाते हैं
दर से उठते है तो दीवार से लग जाते हैं
इश्क आगाज से हल्की सी खलिश रखता है
बाद में सैकड़ों आजार से लग जाते हैं
पहले पहले हवस इक-आध दुकां खोलती है
फिर तो बाजार के बाजार लग जाते हैं
बेबसी भी कभी कुर्बत का सबब बनती है
रो न पाएं तो गले यार से लग जाते हैं
कतरनें गम की जो गलियों में उड़ी फिरती हैं
घर में ले आओ तो अम्बार लग जाते हैं
दाग दामन के हों दिल के हों कि चहरे के ’फराज’
कुछ निशां उम्र की रफ्तार से लग जाते हैं
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