पिचकारी भूली शरम सारी…
फागुन की फगुनाई बागों में है अमराई
वासंती हवा बौराई भांग पीके होली में।
भर-भर पिचकारी भूली है शरम सारी
भीगा-भीगा अंग लिए सखियों की टोली में।
बावरा हुआ है मन पिया के लगके तन
सुध-बुध भूल गई होली की ठिठोली में।
गा रही हवा भी फाग जले तन लगे आग
खुशियों के सारे रंग डालो मेरी झोली में।
@राजेश कुमार भटनागर
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