जिंदगी की अजीब दास्तां

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जिंदगी की अजीब दास्तां



जन्म लिया कर्म किया और चल दिया!
जिनके लिए झूठ को सच कर दिया।
उन्होंने चिता पर रख दिए, थोड़ी देर बैठे
और तेरे जीवन का हिसाब कर दिया!!

था जो तेरा सब वो अपना कर लिया
तेरे हिस्से में रखा एक तिनका और चल दिया
अब जलता रह अकेलेा हमने तो अपना फर्ज अदा कर दिया।

जिन्दा थे तो किसी ने पास नहीं बिठाया
अब खुद चारों ओर बैठे जा रहे हैं।
पहले कभी किसी ने मेरा हाल नहीं पूछा
अब सभी आंसू बहाए जा रहे हैं।
एक रूमाल भी भेंट नहीं दिया, जब जिन्दा थे...
अब शाले और कपड़े उढ़ाए जाए जा रहे हैं।

सब को पता है कि शाले और कपड़े मेंरे काम के नहीं...
फिर भी बेचारे दुनिया दारी निभाए जा रहे हैं।
कभी किसी ने एक वक्त का खाना तक नहीं खिलाया
अब देशी घी मेरे मुंह में डाले जा रहे हैं।
जिन्दगी में एक कदम साथ नहीं चल सका कोई
अब फूलों से सजाकर कंधों पर उठाए जा रहे हैं।

अब पता चला कि मौत जिन्दगी से कितनी बेहतर है...
... हम तो यूं ही जिए जा रहे थे।

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