अटल बिहारी वाजपेयी की कविता

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अटल बिहारी वाजपेयी की कविता



मैंने जन्म नहीं मांगा था!

मैंने जन्म नहीं मांगा था,
किन्तु मरण की मांग करूंगा।

जाने कितनी बार जिया हूं,
जाने कितनी बार मरा हूं।
जन्म मरण के फेरे से मैं,
इतना पहले नहीं डरा हूं।

अंतहीन अंधियार ज्योति की,
कब तक और तलाश करूंगा।
मैंने जन्म नहीं मांगा था,
किन्तु मरण की मांग करूंगा।

बचपन, यौवन और बुढ़ापा,
कुछ दशकों में खत्म कहानी।
फिर-फिर जीना, फिर-फिर मरना,
यह मजबूरी या मनमानी?

पूर्व जन्म के पूर्व बसी -
दुनिया का द्वारचार करूंगा।
मैंने जन्म नहीं मांगा था,
किन्तु मरण की मांग करूंगा।


जो कल थे वे आज नहीं हैं
जो आज हैं वे कल नहीं होंगे
होने ना होने का
ये क्रम ऐसे ही चलता रहेगा...
हम हैं, हम रहेंगे!
ये भ्रम भी सदा पलता रहेगा..!!

मेरे प्रभु!
मुझे इतनी ऊंचाई कभी मत देना,
गैरों को गले न लगा सकूं,
इतनी रुखाई कभी मत देना।

मौत खड़ी थी सर पर,
इसी इंतजार में थी
ना झूकेगा ध्वज मेरा
15 अगस्त के मौके पर
तू ठहर इंतजार कर
लहराने दे बुलंद इसे
मैं एक दिन और लड़ूंगा
मौत तेरे से
मंजूर नहीं है कभी मुझे
झुके तिंरगा स्वतंत्रता के मौके पर

             कोटि कोटि नमन
भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी

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