इन्सानियत

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इन्सानियत



इन्सानियत शायद दम तोड चुकी है ,

सेवा भाव की जगह रुपए का लोभ रह गया है ।

गर्मियों में प्याऊ लगवाने वाले बहुत है पर,

सर्दियों में  गाजर का हलुआ कोई नहीं पूछता ।

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