वकील से कभी पंगा नहीं

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वकील से कभी पंगा नहीं



कभी भी वकील से पंगा नहीं 

वो एक्सप्रेस ट्रेन करीब करीब खाली ही थी।
वकील साहब जिस एसी3 कोच में बैठे थे,
उसमें भी बहुत कम यात्री थे और
उनके वाले पोर्शन में उनके अलावा दूसरा कोई पैसेंजर नहीं था,
तभी एक महिला कोच में उनके वाले पोर्शन में आई और
वकील साहब से बोली, "मिस्टर, तुम्हारे पास जो भी मालपानी, रुपया पैसा, सोना, घड़ी, मोबाइल है सब मुझे सौंप  दो, नहीं तो मैं चिल्लाऊंगी कि तुमने मेरे साथ छेड़छाड़ की है।"





वकील साहब ने शांति से अपने ब्रीफकेस से एक कागज निकाला
और उस पर लिखा, "मैं मूकबधिर हूं, ना बोल सकता हूं और ना ही सुन सकता हूं। तुम्हें जो कुछ कहना है, इस कागज पर लिख दो।

महिला ने जो भी कहा था वह उसी कागज पर लिखकर दे दिया।

वकील साहब ने उस कागज को मोड़कर हिफाजत से अपनी जेब में रखा और बोले, "हां, अब चिल्लाओ कि मैंने तुम्हारे साथ छेड़छाड़ की है। अब मेरे पास तुम्हारा लिखित बयान है।"

यह सुनते ही महिला वहां से यूं भागी जैसे उसने भूत देख लिया हो।





कोई दिक्कत नहीं 


संता बाजार में दरी बेचने वाली दुकान पर गया
और साथ पप्पू को भी ले गया।

संता : मुझे एक बढ़िया दरी चाहिए

दुकानदार : जी जरूर।

दुकानदार ने तरह-तरह की दरियां दिखाईं।
अंत में संता को एक दरी पसंद आ गई।

संता : मुझे यह वाली पसंद है,
मैं इसे अभी अपने साथ ले जा ले जाता हूं।
यदि यह कमरे में ठीक-ठाक आ गई तो रख लूंगा 
नहीं तो वापस भेज दूंगा।

दुकानदार ने विश्वास कर लिया और बोला : अगर आपको  वापस करनी हो तो कल शाम तक वापस भेज दीजिएगा।

इतने में पप्पू बोला : कोई  दिक्कत नहीं है अंकल,
हमारे यहां पार्टी तो आज रात को है।


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