राही

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राही

तुम्हारे स्पर्श की चाह नहीं
तुम्हें पाने की चाह नहीं
तुम्हें अपना बना कर के
तुम्हें अपनी बांहों के बंधन में
कैद रखने की चाह नहीं
चाहन नहीं कि मैं तुम्हारे
ख्यालों में भी भटकूं
होकर मौन तुम्हारे
शब्दों की चाह नहीं

चाह यही कि तुम्हारे दर्श को
इक लम्हा इक पल मिल जाए
होगा यूं जैसे किसी देह अस्थि को पावन गंगाजल मिल जाए।

राही

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