एक नारी की पुकार...

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एक नारी की पुकार...



क्या घूर रहे हो?
वक्ष मेरे..?...लब मेरे... या कमर मेरी..?
इन्हें देख... उत्तेजित हो रहे...?
क्या मन कर रहा... मुझे दबोचने का?
नोचने- खखोरने का..?

एक बात पूछती हूं...सच -सच बताना..?
तुम्हारे घर में भी तो... खूबसूरत- सुड़ौल बहन की कई जोड़ियां होंगी..?
क्या उन्हें भी ...ऐसे ही...
भूखे भेड़ियों की तरह... घूरा करते हो..?

क्या उन्हें भी देख... अपनी लार टपकाते हो..?
वासनाएं चरम पर... पहुंचती हैं तुम्हारी..?
आसानी से ना मिल पाने पर....
हिंसक हो जाते हो..?

अच्छा चलो..!
जाने दो... इस बात को... ये बताओ...?
जिस तरह... तुम अपनी आंखों से...
नग्न कर... बलात्कार... करते हो मेरा...
कोई और भी तो... जरूर करता होगा...
तुम्हारी भी बहन का..?

क्या हुआ..?
क्रोध आ गया..?
खून खौल गया..?
इज्जत पर आंच आ गई..?
जैसे ...तुम्हारी बहन की इक इज्जत है..?
मान- सम्मान- मर्यादा है..!
मेरी भी तो है..!

मैं तुम्हारी आखों में...
अपने लिए प्रेम चाहती हूं...
सम्मान और मर्यादा चाहती हूं...
वासना नहीं..!
कोई हिंसा नहीं... निश्छल, निस्वार्थ प्रेम..!

मैं केवल और केवल प्रेम चाहती हूं! सम्मान चाहती हूं.... एक नारी

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