बचे ना दिल मे अरमान कोई

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बचे ना दिल मे अरमान कोई





बचे ना दिल मे अरमान कोई,
इंसानियत ढूंढती इंसान कोई।

तोड़ कर घर अपनों से भरा,
बना रहा है मकान कोई।

जलता रहा उम्मीदों का दिया,
सीने में लिए तूफान कोई।

वो मिट गए उल्फत में गेर के,
छिड़कता रहा उन पर जान कोई।


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