मनुष्य का वास्तविक धन

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मनुष्य का वास्तविक धन


                   

 *मनुष्य की वास्तविक पूंजी धन नहीं,*

             *बल्कि उसके विचार हैं,*

         *क्योंकि धन तो खरीदारी में*

       *दूसरों के पास चला जाता हैं,*

  *पर विचार अपने पास ही रहते हैं !*

  *अच्छा काम करते रहो कोई*

       *सम्मान करे, या न करे,*

  *क्योंकि सूर्योदय तब भी होता हैं,*

  *जब करोड़ों, लोग सोए होते हैं !!*


   **सुप्रभातम्**


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