कबीर के दोहे

Header Ads Widget

Ticker

6/recent/ticker-posts

कबीर के दोहे





कबीर के दोहे

साई इतना दीजिये, जा में कुटुम समाय।
मैं भी भूखा न रहूं, साधु न भूखा जाय।।

लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट।
पाछे फिर पछताओगे, प्राण जाहि जब छूट।।

जाति न पूछो साधु की, पूछि लीिजए ज्ञान।
मोल करो तलवार का पड़ा, रहन दो म्यान।।

जहां दया तहां धर्म है, जहां लोभ वहां पाप।
जहां क्रोध वहां नाश है, जहां क्षमा वहां आप।।

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
माली सीचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय।।

कबीरा ते नर अन्ध है, गुरु को कहते और।
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर।।

पांच पहर अन्धे गया, तीन पहर गया सोए।
एक पहर हरि नाम, बिनुं मुक्ति कैसे होय।।

Post a Comment

0 Comments