दोहे : जाड़े की रात
घनी धुंध और कुहरा,
थर-थर कांपे गात।
काट से कटती नहीं,
यह जाड़े की रात।।
किसने घट यह शीत का,
दिया रात में फोड़।
नदिया पर्वत झील सब,
सोए कुहरा ओढ़।।
चौपालें सूनी पड़ी,
'धूनी' बाले कौन।
सर्द हवा से हो गए,
रिश्ते-नाते मौन।।
गज भर की है गोदड़ी,
कैसे काटे रात।
आग जला करते रहे,
'होरी' 'गोबर' बात।।
छोड़ रजाई अब उठो,
सी-सी करो न जाप।
आओ खिलती धूप से,
ले-ले थोड़ा ताप।।
दिन भर किरणों ने लिखे,
मधुर धूप के छंद।
स्याही फेरी सांझ ने,
किया तमस में बंद।।
आज कुनकुनी धूप में,
कुछ पल बैठे साथ।
रिश्तों को दे उष्णता,
ले हाथों में हाथ।।
धूप अलगनी पर टंगी,
घर-घर घूमे शीत।
चुन्नू-मुन्नू को हुई,
अब चूल्हे से प्रीत।।
वाह कुमुदिनी धन्य तू,
धन्य तिहारी प्रीत।
देकर उष्मा मीत को,
ख़ुद सहती है शीत।।
टीकम चन्दर ढोडरिया
0 Comments
Thank you to visit our blog. But...
Please do not left any spam link in the comment box.